Main Menu of Dosti ka Haath Sabhi ke Saath

N O T I C E:

Hey, guys, I will deliver if anyone needs notes, a worksheet, a solution for the chapter, MCQ, and whatever they like. immediately. Thanks. cONTACT ME @ +91-8800304018(W)

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

"रिटायरमेंट के बाद पत्नी के साथ जीवन: एक नई शुरुआत की प्रेरक कहानी" #merikahani



"रिटायरमेंट के बाद पत्नी के साथ जीवन: एक नई शुरुआत की प्रेरक कहानी"

आजकल मैं अपनी पत्नी को निहार रहा हूँ। सच पूछिए तो, अपनी किस्मत सँवार रहा हूँ।

रिटायरमेंट के कुछ महीने पहले से ही सहकर्मियों ने पूछना शुरू कर दिया—“चतुर्वेदी जी, रिटायरमेंट के बाद क्या करेंगे?”

मैंने सहजता से जवाब दिया—“अभी तक कुछ सोचा नहीं, लेकिन साहित्य पढ़ूँगा, कविताएँ लिखूँगा।”

उनकी प्रतिक्रिया थी—“अरे! कविता लिखना भी कोई काम है? इसमें क्या मिलेगा? पढ़ने की उम्र भी अब नहीं रही।”

मैं मुस्कुरा दिया। कुछ दिनों बाद एक वरिष्ठ अधिकारी से भेंट हुई। उन्होंने भी वही सवाल दोहराया और लगे हाथ एक नसीहत भी दे डाली—“चतुर्वेदी जी, 24 घंटे पत्नी के सामने रहना आसान नहीं है। कुछ ठोस योजना बनाइए।”

सरकारी नौकरी में वरिष्ठों की बात काटने का साहस कम ही होता है, इसलिए मैंने अपनी बात शालीनता से रखी—“सर, मेरी पत्नी बहुत सुशील हैं। अब उनके साथ जीवन के शेष वर्ष बिताना मेरे लिए किसी भी नौकरी से अधिक मूल्यवान है। वैसे भी, 60 के बाद परामर्शदाता की नौकरी मिलती है, जिसमें वेतन चौथाई मिलता है और लोग परामर्श भी नहीं लेते। इससे बेहतर तो पत्नी के साथ सुबह-शाम चाय की चुस्कियों में जीवन का रस घोलना रहेगा। सच कहूँ, तो जवानी में नौकरी में इतना व्यस्त रहा कि पत्नी को समुचित समय नहीं दे पाया। कायदे से वह आधे जीवन की अधिकारी थीं, परंतु उन्हें चौथाई भी नहीं दे पाया।”

साहब हँसते हुए बोले—“चतुर्वेदी जी, रिटायरमेंट के बाद आज़ाद हैं, लेकिन 24 घंटे पत्नी के साथ बिताना हँसी-खेल नहीं है।”

मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया—“सर, पत्नी तो सुमुखी होती हैं। आप उन्हें ऐसे कह रहे हैं, जैसे कि वे कोई दुर्गम पहेली हों। विद्यापति के शब्द याद आते हैं—यदि जीवनभर पत्नी को निहारता रहूँ, तो भी यह मन तृप्त नहीं होगा।”

वे बोले—“चतुर्वेदी जी, आपकी उम्र अब रोमांस करने की नहीं रही। बुढ़ापे में आदमी को राम नाम जपना चाहिए।”

मैंने उनकी बातों को अनसुना कर दिया, क्योंकि स्त्रियों की आलोचना मुझे कभी पसंद नहीं आई। हमारी संस्कृति में स्त्रियों की पूजा होती है, लेकिन सम्मान देने में कंजूसी कर दी जाती है। मेरी पत्नी, जो मुझे राजकुमार की तरह तैयार करके ऑफिस भेजती थीं, शाम को झरोखे पर बैठकर मेरे आने की प्रतीक्षा करती थीं—उनके बारे में ऐसी बातें मेरे कानों में गर्म शीशे की तरह उतर रही थीं।

समाज ने गृहिणी को ‘हाउसवाइफ’ का तमगा दे दिया, लेकिन शुक्र है सुप्रीम कोर्ट का, जिसने इसे हटाने का निर्णय लिया। अब समय आ गया है कि पतियों को ‘हाउस हसबैंड’ की भूमिका निभानी चाहिए—कम से कम तब तक, जब तक स्त्रियाँ स्वयं इस शब्द पर प्रतिबंध लगाने की माँग न करें।

आजकल एक और बहस गर्म है—काम के घंटे। कुछ लोग दावा करते हैं कि यदि उनका वश चले, तो वे कर्मचारियों से 90 घंटे काम करवाएँ। उनका कहना है—“घर पर रहकर पत्नी का मुँह कब तक देखोगे?” परंतु वे यह नहीं समझते कि ‘निहारना’ देखने से अलग होता है। यह प्रेम का प्रतीक है, समर्पण का प्रतीक है। पति-पत्नी का रिश्ता आँखों की भाषा से गहराई पाता है। इस जीवन की भागदौड़ में हम अपने जीवनसाथी को निहारना क्या, ठीक से देखना तक भूल जाते हैं।

एक बार एक बुज़ुर्ग व्यक्ति ने कहा—“तुम्हारी पत्नी बहुत सुंदर है।” उस दिन मैंने पहली बार उसे ग़ौर से देखा और एक सुंदर कविता लिख डाली।

सच कहूँ, पत्नी का जीवन में आगमन किसी कविता की तरह होता है। जीवन में जो प्रेम के क्षण मिलते हैं, उन्हें कोई समझदार व्यक्ति मिस नहीं करेगा। देखना एक अकर्मक क्रिया हो सकती है, लेकिन निहारना एक सकर्मक, सार्थक क्रिया है।

अब मैंने निर्णय ले लिया है। सात जन्मों तक अपनी पत्नी को निहारता रहूँगा। कवि विनोद कुमार शुक्ल के शब्दों को उधार लेकर कहूँ तो—“इसे मेरी प्रथम और अंतिम इच्छा समझा जाए।”

अभी मेरी नौकरी के कुछ महीने शेष हैं, लेकिन मैं आज ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन करने जा रहा हूँ। अब मैं अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण असाइनमेंट पर हूँ—पत्नी की सेवा में स्वयं को नियुक्त करने के लिए पूरी तरह उत्साहित हूँ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

The Best Post

Ramadan Mubarak: A Month of Spiritual Renewal and Community

     रमज़ान मुबारक: आध्यात्मिक नवीनीकरण और समुदाय का महीना रमज़ान , जिसे अक्सर   रमज...